विल्हेल्म इकेलुन्द की एक कविता
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)
हे कविता!
वो हिम्मत नहीं करेगा
आने की तेरे निकट,
जिसकी आत्मा में निहित नहीं हैं
सपने,
सपने देखने की पर्याप्त उर्जा
सपने सजाने की हिम्मत -
शब्द!
शब्द का पुनर्जन्म.
है जिनके गर्जन में-: "यथार्थ अज्ञात है!"
हर उस बात के लिए जिसमें सांस लेती है आस्था,
वास्तविक जीवन का उत्साह;
हैं वो शब्दों को खड़खड़ाने वाले,
उनकी आत्मा ने कभी नहीं चखी
स्वप्न की मदिरा,
शब्द का रक्त.
O, POESI!
O, Poesi!
Ingen skulle våga
att nalkas dig,
som ej har i själen
dröms,
drömkrafts dristighet nog
att våga drömma -
Ordet!
Ordets pånyttfödelse.
O, I
som skrien-: "verklighets främmande!"
på allt som andas Tro,
Verklighets kärlek;
ni ordskramlare,
aldrig har er själ smakat
Drömmens Vin,
Ordets blod.
-Vilhelm Ekelund
Wah !! Bahut hi sundar .
ReplyDeleteइतनी सुन्दर कविता पढवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteआपके अन्दर कविता के मर्म तक जाने की नेसर्गिक अंतरदृष्टि हैं
इतनी सुन्दर कविता पढवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteआपके अन्दर कविता के मर्म तक जाने की नेसर्गिक अंतरदृष्टि हैं ..
_aharnishsagar
कल 07/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
प्रत्येक शब्द मन में उतरता हुआ ... बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteगज़ब की कविता ...
ReplyDelete