Thursday, August 22, 2013

शाम की प्रार्थना: कारिन बुवेए

कारिन बुवेए की एक कविता 
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)

कोई पल इस तरह का नहीं होता,
जैसा कि शाम के अंतिम कुछ मौन घंटे.
कोई भी दुःख अब और नहीं जलता,
कोई भी हिस्सा नहीं होता और छिछला.

अभी अपने हाथों से पकड़ लो समय
उस दिन को जो बीत चुका है.
यकीनन मुझे पता है: तुम उसे सर्वोत्तम में दोगे बदल
जिसे मैंने या तो बस रखा हुआ है या तोड़ दिया है.

दर्द सोचती हूँ मैं, दर्द ही खरीदती हूँ मैं,
मगर तुम सारे घाव भर देते हो और हर लेते हो हर पीड़ा.
मेरे दिन ऐसे बदल देते हो तुम
जैसे की कंकड़ को बदल दिया गया हो बहुमूल्य पत्थर में.

तुम आह्लादित कर सकते हो, तुम कर सकते हो वहन,
मैं तो बस सबकुछ छोड़ सकती हूँ तुमपर.
मुझे ले लो शरण में, राह दिखाओ मुझे, मिले सान्निध्य तुम्हारा!
ले चलो फिर, जो लगता है ठीक तुम्हें, उस प्रयोजन की ओर!

Aftonbön

Ingen stund är såsom denna,
kvällens sista, tysta timma.
Inga sorger längre bränna,
inga stämmor mera stimma.

Tag då nu i dina händer
denna dagen som förflutit.
Visst jag vet: i gott du vänder
vad jag hållit eller brutit.

Ont jag tänker, ont jag handlar,
men du läker allt och renar.
Mina dagar du förvandlar
så från grus till ädla stenar.

Du får lyfta, du får bära,
jag kan bara allting lämna.
Tag mig, led mig, var mig nära!
Ske mig vad du sen må ämna!

-Karin Boye

2 comments:

  1. आपके ब्लाग में कारिन बुवए की कविताएँ पढ़कर उनके बारे में अधिक जानने की इच्छा होती है।

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  2. मुझे ले लो शरण में, राह दिखाओ मुझे, मिले सान्निध्य तुम्हारा!
    वाह! सच्ची और मासूम प्रार्थना है। धन्यवाद इस कृति को भाषारूपान्तरण कर साझा करने के लिये।
    एक विचार यह भी है मगर,
    "मसीहा कौन यहाँ?और कौन यहाँ रहबर है,
    हर इन्सान को इस राह अकेले ही चलना होगा"!
    www.sachmein.blogspot.com

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