Thursday, June 14, 2012

मौत की कृपा: जैक वैरूप

जैक वैरूप की एक कविता
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)

मृतकों की रात में नहीं होता हमारा अस्तित्व.
मृतकों की दृष्टि में हम ही मरे हुए हैं.

जीवित रहने वालों में ही रोशन होते हैं मृत.
वो हमारे साथ मेज़ पर बैठते हैं.
वो हँसते और गाते हैं,
होते हैं सुन्दर, जैसे वास्तव में रहे होंगे शायद उसकी तुलना में अधिक ही.

और हम उन्हें करते हैं प्यार, शायद
पहले से भी अधिक, उन्हें बचाए रखते हैं हम
हृदय के करीब, यहाँ

मौत की उज्जवल कृपा में.

Dödens nåd

I de dödas natt finns inte vi.
För de döda är det vi som dött.

I de levandes ljus de döda.
De sitter till bords med oss.
De skrattar och sjunger,
är vackrare än de kanske var.

Och vi älskar dem, kanske
mer än förr, håller dem
kära kvar hos oss, här

i dödens ljusa nåd.

-Jacques Werup

2 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता और उतना ही अच्छा अनुवाद. बधाई आपको!

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